और फिर से उठाये हैं
कुछ बीते हुए नरम पलों के गुच्छे
इन्हें सुलझा कर, एक गरम दुशाला बनाऊँगा
और सहेज कर रख लूँगा उसको.
जब आँखों में वक्त की परतें जमने लगेंगी
जब चेहरे से उम्र का बोझ छलकने लगेगा
और जब जीवन की दोपहर ढलने लगेंगी
तब उस दुशाले को निकाल कर ओढ़ लूँगा
और जाते हुए वक्त को पकड़कर फिर से जवान कर दूंगा
फिर से जी लूँगा अपने बचपन को, अपने शैतान लड़कपन को
और प्यार भरी जवानी को
और जब आँखें धुंधलाने लगेंगीं, तो उसी दुशाले को ओढ़ कर
एक लंबी नींद सो जाऊँगा.
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