दर्द-ए-दिल के आईने से,
तस्वीर-ए-यार जाती नहीं
मर मर के जीते हैं यहाँ
एक सांस अटकी है जो जाती नहीं.
दिन में तेरा एहसास
हमें जीने देता नहीं
रातें तनहा गुज़र जाती हैं
तू आँखों के सामने आती नहीं
घुल चूका है अक्स तेरा
मेरे वजूद-ए-तश्ना में
दे के गयी है जो ज़ख्म तू
क्यूँ आके उन्हें भर जाती नहीं
वो बीते पल याद आते हैं
जो हर पल आंसूं दे जाते हैं
अकेले यूँ जीना आसान नहीं
क्यूँ फिर भी मौत आती नहीं.
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